गुरुवार, 17 जून 2010

संकल्प

संकल्प
गुजरात के हिन्दी प्रेमी शिक्षक भाई-बहनों एवं राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार में सेवारत कार्यकरगण को नमस्कार,
गुजरात राजय माध्यमिक शिक्षण बोर्ड से उच्च शिक्षण तक पिछले चार वर्षों में हिन्दी भाषा शिक्षण विरोधी शिक्षानीति को देखकर हर कोई हिन्दी प्रेमी का दिल कराह उठेगा। सरकार की राष्ट्रभाषा के प्रति एसी तिरस्कार की भावना, वास्तव में स्वामी दयानंद सरस्वती जिन्होंने हिन्दी की नींव गुजरात से पूरे विश्व में वेद-धर्म-संस्कृति का परचम लहराया; साथ ही हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी अपमान है। आज तक गुजरात की किसी सरकार ने अपनी शिक्षानीति में हिन्दी की ऐसी उपेक्षा नहीं की है। स्वयं को राष्ट्रप्रेमी, राष्ट्रवादी सरकार माननेवाली वर्तमान सरकार का राष्ट्रभाषा विरोध, घोर कलंक ही माना जाना चाहिए।
सरकार ने शिक्षा में बोझ को दूर करने के नाम पर हिन्दी का बलिदान अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु लिया है। अगर अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा बोझ नहीं समझी जाती तो फिर राष्ट्रभाषा हिन्दी की माध्यमिक शिक्षा या उच्चतर में अनिवार्यता दूर कर अंग्रेजी को रखना अन्याय है, हम वैश्विकीकरण के दौर में अंग्रेजी शिक्षा का विरोध नहीं करते उसे मिटाना नहीं केवल अनावश्यक जगह से थोडा हटाना है। कयोंकि राष्ट्रभाषा हिन्दी शिक्षा को अनिवार्य मानते हैं। गुजरात में ऐसे निर्णय से ग्रामीण और नगर के शिक्षा स्तर में बड़ा अन्तर आ जाएँगा। आज भी ग्रामीण क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा के जानकर शिक्षकों की कमी हैं और सामान्य अंग्रेजी का ज्ञान रखनेवाले शिक्षकों के हाथों विद्यार्थिओं को अंग्रेजी सिखायी जाती हैं। इससे तो न हिन्दी के रहे न अंग्रेजी के रहे, “दुविधा में दोनु गए, माया मिली न राम।” वाली उक्ति आज उन शिक्षण के सदस्योंने सही बना दी। ऐसी स्थिति में हम हिन्दी प्रेमी भाई-बहेनों का परम कर्तव्य है कि केवल सरस्वती वंदना से भाषा का भविष्य अब सुरक्षित नहीं रहेगा। उसे श्रद्धा-प्रेम के साथ लोकप्रिय बना कर दीर्धायु भी बनाना आवश्यक हैं। आप सभी से नम्र निवेदन है कि शिक्षित बेरोजगार इतना आश्वासन चाहते हैं तभी उपकार हो सकता है जब हिन्दी से जुड़े लोगों ने हिन्दी की रोटी तो खूब खाई, पर रोटी की हिन्दी पैदा नहीं की। हिन्दी प्रयोजन पर बहस तो खूब की पर प्रयोजन मूलक हिन्दी को अनदेखा किया और उनके ही हाथों हजारों लोग आज बेरोजगारी की गर्त में जा रहे या आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। इसलिए हमें इसे अपनी रोटी की भाषा न मानते हुए राष्ट्र की अस्मिता एवं स्वाभिमान की भाषा माननी चाहिए अपनी अस्मिता की रक्षा दूसरे का मुँह देखकर नहीं करते वैसे ही राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा में स्वयं की आहुति करनी होगी। जिस पर आज शिक्षण-विभाग ने हिंदी के अस्तित्व पर कुल्हाडी चलायी हैं। गांधी जी ने अंग्रेजों को तो राष्ट्र से निकाल बहार किया पर अंग्रेजी मानस को नहीं बदला जा सका। हमें गुजरात सरकार से पूछना होगा कि विश्व का ऐसा कोई देश हैं जहाँ अपनी राजभाषा का इस तरह तिरस्कार किया जाता हो? अपनी भारतीय संस्तृति की धरोहर रूपी भारतीय भाषा को मृतप्रायः अवस्था मे डालना राष्ट्र पतन की निशानी है।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी, गांधी जी गुजरात के सपूत थे। हिन्दी भाषा के माध्यम से पूरे हिन्दुस्तान को राष्ट्रीय एकता, धर्म, भाईचारे का संदेश देते हुए अंग्रेजों की गुलामी से भाषा रूपी शस्त्र से परास्त किया। मगर आज उसी गुजरात में हिन्दी का तिरस्कार वास्तव में गांधी जी का ही देश निकाला हैं।
हमारी संघशकित का परिचय देते हुए हिन्दी के गौरव को पुनः स्थापन करना होगा कयोंकि यह हमारी स्वत्व की भाषा है आत्मगौरव-राष्ट्रगौरव की प्रतीक हैं- कवि दिनकर ने सही कहा हैं किः-
“छीनता है स्वत्व कोई और तू त्याग तप से काम ले यह पाप है;
पुण्य है विच्छन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ़ जो हाथ है ।।
अपने अधिकार, राष्ट्र अस्मिता को गौरवान्वित करने के लिए लड़ते रहो हम बुंलद आवाज़ में गगन को भर दे और सरकार और शिक्षण-विभाग की जालसाजी का पर्दाफास करें, “जो हिन्दी का नहीं है वह हिन्दुस्तानी भी नहीं हैं।”
गुजरात राज्य हिन्दी शिक्षा
बचाओ समिति

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