बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

Ganddhi ji love Rashtrabhasha Hindi samarthan

Aazad hindushtan ke eduction me Hindi bhasha ko anivariya pura karvane ka swapna aaj bhi adhura he.kas ab hind ki apni rashtra vani savidhan me lane sansad ko majbur karna hoga.

Bapu ki echa ko hind bapu ki dirdh deashti se soch kar hamra pl. sath de.

aao hind ko apni vani ka vardan dekar rashtra run chukaye.

5 टिप्‍पणियां:

  1. आज का दिन कुछ खास है . 29 मार्च 2024 , जिसमें मुझे खुद ब्लॉग लेखन आकर्षक तरीके से कैसे किया जाए ,यह अपने छात्रों को समझाने के प्रयास हेतु इसको लम्बें अंतराल के बाद लिखना शुरू करने का दिन २९ मार्च ही जो कि मनपसन्द विषय पर अपनी बात को प्रकाशित कर रहा हूँ .

    वैसे हिंदी शिक्षा का अध्ययन कर रहे छात्र छात्राएँ हिंदी पढ़ तो आसानी से लेते है किन्तु जब उसी भाषा में अपने निजी विचार अभिव्यक्त करने के लिए जब कलम उठाते है तब उनके विषय के अनुरूप शब्द संपदा का उपयोग उन्हें अच्छी तरह से याद भी आये यह अनिवार्य शर्त है . उसके बाद ही अपनी बात को सार्थक तरह से लिखकर हिंदी भाषा शिक्षा अपने जीवन व्यहवार में आये दिन उपयोगी सिद्ध होगी .

    कोई भी लेखन तभी असरकारक हो सकेगा जब तक उस विषय अनुरूप आपने कुछ प्रमाणिक प्रयास से पढ़ा होगा उनसे परिचित हुए होगे इस लिए मेरे सभी छात्रों से लेखन से पूर्व उसी विषय की जानकारी,शब्द संपदा को सबसे पहले देखने की और उन्हें अपने विचार में क्रमबद्ध करके लिखने का मुहावरा बढ़ाना चाहिए .

    जब आप अपने निजी विचार को प्रकट करते है तब बहुत कम शब्द में बहुत कुछ कहना चाहते है उसे लिखित स्वरूप में जब लिखने बैठते है तब जो सोचा उन्हीं को सार्थक ,शुद्ध सही मानक रीति से लिखे .

    आज बस इतना ही .
    आप का दिन शुभ मंगलमय हो .

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  2. हिंदी के यात्रा साहित्य के लिए प्रसिद्ध लेखक राहुल सांकृत्यायन के उपन्यास पर लिखा आलेखन आप के सामने रख रहा हूँ - ३० मार्च २०२४

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  3. सार संक्षेप : राहुल सांकृत्यायन जी एक बहुनाम धन्य विराट व्यक्तित्व के स्वामी हैं । उनके साहित्य में उनके युग की चेतना और विराट बोद्धिक प्रतिभा के दर्शन होते हैं । वे साम्यवादी और मार्क्सवादी चिंतन से ओतप्रोत व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे । उनका द्रढ़तापूर्वक मानना है कि समाज में व्याप्त समस्त समस्याओं का कायमी समाधान साम्यवाद से लाया जा सकता है । यही सभी समस्या का अक्सीर औषध है । उन्होंने अपने उपन्यास से तत्कालीन प्रत्येक व्याधि पर अपनी कलम की कठोर चोट करने का सार्थक प्रयास किया है । वे अतीत के प्रति गौरव को स्वीकार करते हैं । अतीत के गौरव के साथ-साथ नवीनता को भी धारण करना चाहिए । जड़ता को भी मौत के समान मानते हैं । प्रवाहमयता ही जीवन का आधार तत्व है इसी अवधारणा ने उनके कृतित्व की रचनाओं के माध्यम से सदैव गतिमान रखा । राहुल जी इतिहास के ढांचे में साम्यवाद का श्वास भरना चाहते थे । अपनी प्रवाहमयता से अपार ज्ञान अर्जन किया और उससे इतिहास में झाँककर वर्तमान के स्वरूप को सुधारना चाहा है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में निरंतर यात्रा उनकी जीवनधारा बन गयी । वे ‘स्व’ को मानव के लिए मिटाने वालों में अग्रगण्य हैं । उन्होंने अपने साहित्य के द्वारा समस्त युगीन समाज में व्याप्त अव्यवस्था की शल्यचिकित्सा करते हुए कलम के शिल्प द्वारा शल्यक्रिया करके उसे विकास के नवीन-नवीन सोपानों पर आरूढ़ करते हुए उच्च शिखर पर पहुँचाने का प्रयास किया हैं ।

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  4. राहुल सांस्कृत्यायन सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न और प्रगतिशील विचारधारा के सक्षम विचारक थे । अपने विराट व्यक्तित्व और कृतित्व के कारण वे हिंदी साहित्य में अप्रतिम स्थान के अधिकारी माने जाते हैं । उनका जीवन क्रांतिमय निरंतर सत्यान्वेषण,गतिशीलता,अनुसंधानप्रियता रूप अनुसंधित्सू के मानसिकता वाला अन्वेषक चित्त के स्वामी एवं रूढ़िवादिता पर प्रहार करने वाला व्यक्तित्व उनके जीवन की विशेषताएँ थी ऐसा कहा जा सकता है । उनका लेखन पथ अत्यंत बीहड़ एवं कठिन था । भारत के अलावा विदेशी विद्वान् भी इनके पाण्डित्य की प्रशंसा करते थे । उन्होंने अपने बुद्धि वैभव के बल पर पुरे विश्व में और हिंदी जगत में धूम मचा दी थी । उस पर अनुसंधान करते हुए मैंने पाया की यह धूम केवल आडम्बर मात्र न था। उसमें सच्चाई थी । उसी सच्चाई के कारण ही उन्हें महापण्डित की उपाधि से अलंकृत किया गया था । पं.रामगोविंद त्रिवेदी ने राहुल जी के विषय में लिखा है –“ वे विनय,तप,गाम्भीर्य की मूर्ति थे और ग्रंथ प्रणयन में लघु व्यास थे । उनका प्रज्जवल और प्रदीप्त मुखमंडल ही कहता था की सभ्य,शिष्ठ और अधिकारी विद्वान् थे । उनकी आराध्या शारदा थी,उसी की सेवा में सदा निरंतर रमण करते थे । वे देश की विशेषत:हिंदी की विभूति थे । वे उच्चकोटि के ज्योतिपुंज चमत्कारी मनुष्य थे ।

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  5. राहुल जी का दूसरा उपन्यास ‘जीने के लिए’ है । इसमें प्रथम विश्व-युद्ध के बाद भारतियों द्वारा स्वतंत्रता-प्राप्ति हेतु किये गये प्रयासों का लेखा-जोखा है । अंग्रेजों की अमानुषिक दमननीति चाहे वह कृषकों के प्रति हो या व्यापारियों के प्रति सभी का इसमें समावेश है । मार्क्सवादी दर्शन को भी राहुल जी ने इस उपन्यास में उभारा है । समग्र रूप से इसमें सामाजिक,धार्मिक और आर्थिक समस्याओं को मुखरित करने का ध्येय लेखक का रहा है और उसे सफलता भी मिली है । यह एक सामाजिक उपन्यास है ।

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